“सच्ची घटनाओं पर आधारित: “इमरजेंसी” 1975 के आपातकाल के पीछे का वास्तविक इतिहास”

"सच्ची घटनाओं पर आधारित: "इमरजेंसी" ..

यह फिल्म “इमरजेंसी” कंगना रनौत द्वारा निर्देशित और अभिनीत एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जो 1975-77 के भारत के आपातकाल की घटनाओं पर आधारित है, विशेषकर इंदिरा गांधी के नेतृत्व में लगाए गए आपातकाल के राजनीतिक और सामाजिक प्रभावों को दर्शाती है। फिल्म में कंगना रनौत ने इंदिरा गांधी का किरदार निभाया है, जबकि अन्य प्रमुख भूमिकाओं में अनुपम खेर, श्रेयस तलपड़े, महिमा चौधरी, मिलिंद सोमन, और विशाक नायर जैसे अभिनेता भी शामिल हैं। जिसकी सिनेमा घरो में 17 जनवरी को देखा जा सकता है|

आपातकाल का समय भारतीय राजनीति के एक बेहद संवेदनशील और विवादास्पद दौर को दर्शाता है, और फिल्म की विषयवस्तु कई लोगों के लिए बहुत ही भावनात्मक और ऐतिहासिक महत्व रखती है। खासकर पंजाब के संदर्भ में, यह वह समय था जब सिख समुदाय पर भारी दबाव था, और इसके बाद 1980 के दशक में पंजाब में आतंकवाद और अन्य राजनीतिक मुद्दों की शुरुआत हुई थी।

आपातकाल के समय

सिख समुदाय के कुछ सदस्यों द्वारा फिल्म के रिलीज पर आपत्ति जताने की वजह शायद इस कारण हो सकती है कि आपातकाल के समय और उसके बाद के घटनाक्रमों में सिखों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव की घटनाएँ हुईं। ऐसे में फिल्म की संवेदनशीलता पर ध्यान दिया जाना स्वाभाविक है। यह भी हो सकता है कि फिल्म की प्रस्तुति या उसके कुछ दृश्य उन घटनाओं को नए दृष्टिकोण से दिखा सकते हैं, जिनमें विभिन्न पक्षों की अलग-अलग यादें और धारणाएं हैं।

CBFC (केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड) ने कुछ कट के बाद फिल्म को रिलीज करने की अनुमति दी है, और यह निर्णय भी लिया गया कि चुनावों के बाद फिल्म को रिलीज किया जाएगा। ऐसा निर्णय इसलिए लिया गया है ताकि राजनीतिक और सामाजिक संदर्भ में फिल्म के प्रभाव को समझा जा सके और दर्शकों की भावनाओं का ध्यान रखा जा सके। चुनावी दौर के दौरान फिल्म की रिलीज से समाज में विभिन्न राजनीतिक प्रतिक्रिया उत्पन्न हो सकती थी, जिससे स्थिति को और जटिलता का सामना करना पड़ता।

कंगना रनौत के निर्देशन में “इमरजेंसी” 1975 के आपातकाल के पीछे का वास्तविक इतिहास” को लेकर दर्शकों और समीक्षकों की तरफ से मिश्रित प्रतिक्रियाएं आ सकती हैं। हालांकि, फिल्म में भारत के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक समय को छुआ गया है, और इस कारण यह निश्चित ही इतिहास, राजनीति और समाज के प्रति एक गंभीर संवाद उत्पन्न करने की संभावना रखती है।


“इमरजेंसी” 1975 की आपातकाल: भारतीय लोकतंत्र का काला अध्याय

परिचय
“इमरजेंसी” 1975 के आपातकाल के पीछे का वास्तविक इतिहास” जो 1975 के आपातकाल के पीछे का वास्तविक इतिहास” को दर्शाता है 1975 का आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक ऐसा दौर था, जिसे आज भी भयावह और विवादास्पद माना जाता है। यह 21 महीनों तक चला, जिसने न केवल भारतीय राजनीति बल्कि आम जनता के जीवन पर गहरा असर डाला।


आपातकाल क्या था?
25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा की। इसके तहत नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया, प्रेस पर सेंसरशिप लगाई गई, और विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया।

इसका भारतीय इतिहास में महत्व क्यों है?
आपातकाल भारतीय लोकतंत्र के लिए एक चेतावनी थी कि शक्ति का केंद्रीकरण कितनी आसानी से लोकतंत्र को खतरे में डाल सकता है।


आपातकाल से पहले का राजनीतिक परिदृश्य

उस समय के प्रमुख राजनीतिक नेता और पार्टियां
इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी। वहीं, विपक्षी नेताओं जैसे जयप्रकाश नारायण और मोरारजी देसाई ने सरकार की नीतियों का कड़ा विरोध किया।

बढ़ते राजनीतिक तनाव और असंतोष
भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के मुद्दों पर देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे। विपक्ष ने इंदिरा गांधी पर तानाशाही का आरोप लगाया।


आपातकाल की घोषणा के कारण

इंदिरा गांधी पर भ्रष्टाचार के आरोप
1975 में इंदिरा गांधी पर चुनावी भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे, जिससे उनकी सरकार संकट में आ गई।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा गांधी को चुनाव में अनियमितता के लिए दोषी ठहराया गया जिससे उनकी प्रधानमंत्री पद की वैधता पर सवाल उठने सुरु हो गए ।

राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरे और इंदिरा गांधी का निर्णय
बढ़ते राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाने का फैसला लिया।

बढ़ते राजनीतिक अस्थिरता को देखते हुए  आपातकाल लगाने का फैसला लिया।

आपातकाल का दौर (1975-1977)

नागरिक अधिकारों का निलंबन
इस अवधि में भारतीय संविधान को दरकिनार कर दिया गया। नागरिकों की अभिव्यक्ति की आज़ादी छीन ली गई।

विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी
जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, और अन्य विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया।

प्रेस पर सेंसरशिप
मीडिया को सरकार की आलोचना करने से रोक दिया गया। अखबारों पर सेंसरशिप लगाई गई।

पत्रकारों और अखबारों की कहानियां
इंडियन एक्सप्रेस जैसे अखबारों ने विरोधस्वरूप खाली जगहें छापी।


आम जनता पर प्रभाव

जबरन नसबंदी अभियान
संजय गांधी के नेतृत्व में जबरन नसबंदी अभियान चलाए गए, जिसने लाखों लोगों को प्रभावित किया।

झुग्गी-बस्तियों को तोड़ने की घटनाएं
शहरी विकास के नाम पर हजारों झुग्गियां उजाड़ दी गईं।

डर और दबाव का माहौल
लोगों में गिरफ्तारी का डर इतना था कि कोई सरकार के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं करता था।


विरोध और प्रतिरोध

विरोध और प्रतिरोध

जयप्रकाश नारायण की भूमिका
जेपी आंदोलन ने लोगों को लोकतंत्र की रक्षा के लिए संगठित किया।

भूमिगत आंदोलन और विरोध प्रदर्शन
गुप्त रूप से काम करने वाले समूहों ने आपातकाल का विरोध जारी रखा।

आपातकाल पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया
दुनिया भर में आपातकाल की आलोचना हुई, लेकिन कुछ देशों ने इसे भारत का आंतरिक मामला बताया।


आपातकाल का अंत

आपातकाल हटाने का निर्णय
1977 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल हटाने और चुनाव कराने का फैसला किया।

1977 के आम चुनाव
चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और जनता पार्टी सत्ता में आई।

इंदिरा गांधी सरकार का पतन
यह भारतीय राजनीति में कांग्रेस के प्रभुत्व का अंत था।


आपातकाल की विरासत

भारतीय लोकतंत्र के लिए सबक
आपातकाल ने दिखाया कि लोकतंत्र को बचाने के लिए नागरिकों का सजग रहना कितना जरूरी है।

आपातकाल के बाद किए गए संस्थागत सुधार
आने वाले वर्षों में कानूनी सुधार किए गए ताकि आपातकाल जैसी स्थिति दोबारा न हो।


निष्कर्ष
1975 का आपातकाल हमें यह याद दिलाता है कि लोकतंत्र की सुरक्षा हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। यह घटना लोकतंत्र की नाजुकता और शक्ति दोनों का प्रतीक है।


FAQs

1. 1975 में आपातकाल क्यों लगाया गया?
आपातकाल लगाने का मुख्य कारण राजनीतिक अस्थिरता और इंदिरा गांधी पर लगे आरोप थे।

2. आपातकाल ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कैसे प्रभावित किया?
प्रेस पर सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगाई गई।

3. आपातकाल के खिलाफ किसने और कैसे विरोध किया?
जयप्रकाश नारायण और विपक्षी नेताओं ने आंदोलन और गुप्त संगठनों के माध्यम से विरोध किया।

4. आपातकाल के दीर्घकालिक प्रभाव क्या थे?
लोकतंत्र की मजबूती के लिए कानूनी और संवैधानिक सुधार किए गए।

5. आपातकाल पर आधारित किताबें या फिल्में कौन सी हैं?
आपातकाल पर आधारित कई किताबें और फिल्में हैं, जैसे “इमरजेंसी: ए पर्सनल हिस्ट्री” और फिल्म “इंदु सरकार।”

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